ताजे आम को खाने को मजा ही कुछ और है, मगर दिक्कत यह है कि आम की ज्यादातर किस्में जून का महीना आधा बीतने के बाद ही प्राकृतिक तौर पर पकनी शुरू होती हैं।
दूसरी तरफ, डिमांड पूरी करने के लिए व्यवसायी इससे पहले ही पका हुआ आम बाजार में उतार देते हैं। आम को पकाने के लिए कार्बाइड जैसे केमिकल का इस्तेमाल हो रहा है। बाहरी राज्यों व लोकल से मंडी में आ रहा आम केमिकल युक्त जहर से पक रहा है। इस तरह का संदेह होने पर खाद्य सुरक्षा अधिकारियों ने जांच शुरू कर दी है।
हल्द्वानी की मंडी में इस समय मुंबई व अन्य बाहरी राज्यों के आम आ रहा है। इसी बीच लोकल आम दशहरी ने भी दस्तक देनी शुरू कर दी है। बाहरी राज्यों व लोकल से प्रतिदिन एक से दो ट्रक आम की आवक मंडियों में हो रही है। मंडियों में आ रहा अधिकांश आम कच्चा यानी हरा है। इसे मंडी के अंदर केमिकल व काबाईड का उपयोग कर पकाया जा रहा है।
कार्बाइड से पके आम से कैंसर तक का खतरा
वरिष्ठ आयुर्वेद काय चिकित्सा विशेषज्ञ डा. एनके मेहता ने बताया कि कार्बाइड की मदद से पकाए गए आम से शरीर को कई तरह समस्याएं झेलनी पड़ सकती हैं, जैसे- पाचन तंत्र गड़बड़ होना, उल्टी, गले में जलन, खांसी, सांस लेने में तकलीफ, चक्कर, कमजोरी, बार-बार प्यास लगना, स्किन से जुड़ी समस्याएं आदि। लंबे समय तक इस केमिकल की मदद से पके आम को खाने से कैंसर का खतरा भी बढ़ सकता है।
आम, केले और तरबूज के लिए सैंपल
आम, केले और तरबूज को केमिकल से पकाने के शक पर खाद्य सुरक्षा टीम जांच को पहुंची। खाद्य सुरक्षा अधिकारी अभय कुमार सिंह ने बताया कि खाद्य संरक्षा एवं औषधि आयुक्त के निर्देश पर कार्रवाई की गई।
शनिवार को कुमाऊं मंडल के उपायुक्त मनोज कुमार थपलियाल व अभिहित अधिकारी संजय कुमार सिंह के नेतृत्व में आम, तरबूज व केले के सैंपल लिए गए। सुंदर लाल मौर्य व कन्हैया लाल की आढ़त से सैंपल भरकर जांच की। इसके बाद टीम ने मंगल पड़ाव क्षेत्र में भी निरीक्षण किया। इसमें खाद्य सुरक्षा अधिकारी कैलाश चंद्र टम्टा भी शामिल रहे।